( हैज़ माहवारी, M.C Period )
आयत : रब तआला - इरशाद फरमाता है
तर्जमा : - तो औरतों से अलग रहो हैज़ के दिनों , और उन से नज़दीकी न करो जब तक पाक न हो लें फिर जब पाक हो जाए तो उनके पास जाओ जहाँ से तुम्हे अल्लाह ने हुक्म दिया,
( तर्जमा : - कन्जुल ईमान शरीफ , पारा 2 सूरए बकर , आयत 222 )
बालेगा औरत के आगे के मकाम ( शर्मगाह ) से जो खून आदत के मुताबिक निकलता है उसे हैज़ ( माहवारी , मासिक धर्म अवस्था , M.C वगैरा ) कहते है । लड़की से जिस उमर से येह खून आना शुरू हो जाऐ उस ही वक्त से वोह बालिग समझी जाती है । मस्अला : -हैज़ ( माहवारी ) की मुद्दत ( Period ) कम से कम तीन दिन और तीन रातें है , यानी पूरे बहत्तर ( 72 ) घंटे , एक मिन्ट भी अगर कम है तो हैज़ नहीं।
और ज्यादा से ज्यादा दस( 10 ) दिन और रातें हैं।
मस्अला : येह ज़रूरी नहीं कि मुद्दत में हर वक्त खून जारी रहे बल्कि अगर कुछ कुछ वक्त आए जब भी हैज़ है।
मस्अला : -हैज़ में जो खून आता है उस के छे ( 6 ) रंग है । काला , लाल , हरा , पीला , गदेला ( कीचड़ की तरह गन्दा ) और मटीला ( मिटटी के रंग जैसा ) इन रंगों में से किसी भी रंग का खून आए तो हैज़ हैं सफेद रंग की रूतृबत ( गिलापन , ( Moisture ) हैज़ नहीं।
मस्अला : -हैज़ और निफासकी हालत में क़ुरआने करीम छूना, देख कर या ज़बानी पढ़ना, नमाज़ पढ़ना, दीनी किताबों को छूना, येह सब हराम है लेकिन दुरूद शरीफ , कलमा शरीफ़ वगैरा पढ़ने में काई हर्ज नहीं
( बहारे शरीअत , जिल्द 1 हिस्सा नं 2 , सफा नं 46)
मसअला :हालते हैज में औरत को नमाज भुआफ है और उसकी कजा भी नहीं यानी पाक होने के बाद छूटी हुई नमाज़ भी नहीं है । इसी तरह रमजान शरीफ के रोजे हालते हैज़ में न रखे लेकिन बाद में पाक होने के बाद जितने रोज़े छूटे थे वह सब कज़ा रखने होंगे!
"हालते हैज़ में सोहबत करना?"
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हालते हैज़ में सोहबत करने से औरत को बहुत तकलीफ़ होती है क्योंकि औरत का उस जगह से लगातार गन्दा खून निकलता रहता है जिस की वजह से वोह जगह नर्म और नाज़ुक हो जाती है और जब मर्द अपना आला( ऊज़ू - ए - तनासूल , sex part ) उस में दाख़िल करता है तो वहाँ जख्म बन जाता है जिस से तख़लीफ़ होती है और जख्म में गर्मी की वजह से उस में पीप भर जाती है। और फिर बाद में लेने के देने पड़ जाते हैं। जरा खुद ही सोचिये उस घर में इन्सान क्या रह सकता है जहाँ गन्दगी और बदबू हो। फिर भला उस मुकाम से उसे कैसे फायदा हो सकता है जहाँ गन्दगी का बसेरा है। हाँ उस मुकाम से उसी वक्त फायदा हासिल किया जा सकता है। वोह साफ व पाक हो। लिहाजा चन्द दिनों का सब्र बेहतर है। इससे कि जो सब्र न कर सके ज़िन्दगी भर पछताया जाए।
मस्अला : औरत हैज़ की हालत में है और मर्द को शहवत
( सहवास , sex ) का जोर है, और डर येह है कि सोहबत न की तो किसी से जि़ना ( बलत्कार ) कर बैठूगा तो ऐसी हालत में अपनी औरत के पेट पर अपने आले ( ऊज़ू - ए - तनासुल , लिंग ) को मस कर के इन्ज़ाल कर सकता है। ( यानी मनी निकाल सकता है ) जो जाइज़ है लेकिन रान पर ना जाइज़ है कि हालते हैज़ में नाफ ( बोम्नी , The Navel ) के नीचे से घुटने तक अपनी औरत के बदन से सोहबत नहीं कर सकता। ( फूतावा - ए - अफ्रीका , सफा नं . 171 )
याद रहे येह मस्अला ऐसे शख़्स के लिए है जिसे जिना हो जाने का पूरा यकीन हो तो वोह इस तरह से मनी निकाल कर सूकून हासिल कर सकता है । लेकिन सब्र करना और उन दिनों सोहबत से बचना ही अफ़ज़ल है।
मरअला : हालते हैज़ में सोहबत करना बहुत बड़ा गुनाह ( हराम व ना जाइज़ ) है लेकिन औरत का बोसा ( चुम्मन ) ले सकते है | ख़बरदार बात चूम्मन ( Kiss ) तक ही रहे उससे आगे ( सोहबत तक ) न पहुँच जाए। इसी तरह एक ही पिलेट में साथ खाने पीने यहाँ तक कि उस का झूठा खाने पीने में भी काई हर्ज नहीं। गर्ज् कि औरत से वैसा ही सुलूक रखे जैसा आम दिनों में रहता है। लेकिन एक बार फिर हम आप को आगाह कर देते है कि किसी भी हालत में औरत की शर्मगाह में सोहबत न करे।
हालते हैज़ में औरत के साथ शौहर का सोना जाइज़ है। और अगर साथ सोने में शैहवत ( Sex ) का गलबा और अपने को काबू में न रखने का शक हो तो साथ न सोए। और अगर पक्का यकीन हो तो साथ सोना गुनाह नहीं है।
मस्अला : हैज़ के बाद सोहबत कब करें : हमारे इमाम , इमामे आज़म अबू हनीफा रदीअल्लाहो तआला अन्हु के नज़दीक , हालते हैज़ में जब औरत से खून दस ( 10 ) दिनों के बाद आना बन्द हो जाए तो ग़ुस्ल से पहले भी सोहबत करना जाइज़ है लेकिन बेहतर है कि औरत जब गुस्ल कर ले उस के बाद ही सोहबत की जाए।
हैजू से पाक होने का तरीका़।
( हदीस : - ऊम्मूलमोमेनीन हज़रत आएशा सिद्दीका रदौअल्लाहो तआला अन्हा से रिवायत है कि
“ एक औरत ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलैह व सल्लम से हैज़ के ग़ुस्ल के बारे में पूछा । आप ने उसे बताया-- " यूँ गुस्ल करे ”। और फिर फरमाया --- " मुश्क ( कस्तूरी ) से बसा हुआ रूई का फाया ले और उस से तहारत हासिल कर "
वोह समझ न सकी और कहा " किस तरह तहारत करूँ"? फरमाया " सुबहानल्लाह उस से तहारत करो"
( हज़रत आएशा फ़रमाती है )" मै ने उस औरत को अपनी तरफ खींच लिया और उसे बताया कि उसे खून के मुकाम पर फेरे"।
(बुख़ारी शरीफ , जिल्द 1 बाब नं . 215 , हदीस नं . 305 , सफा नं 201)
नोट": - इस जमाने में मुश्क मिलना मुश्किल है इसलिए उस की जगह इतर या गुलाब पानी का फाया लें।"'
इस हदीसे पाक से मअलूम हुआ कि हैज़ का खून जब आना बन्द हो जाए तो औरत जब गुस्ल करने बैठे तो पहले रूई
( कपास,Cotton ) को इतर वगैरा की खुशबू में बसा ले फिर उसे खून के मकाम ( शर्मगाह ) पर अच्छी तरह फेरे ताकि वहाँ की सारी गन्दगी साफ हो जाए फिर उसके बाद गुस्ल कर ले
( गुस्ल का तरीका हम आगे दुसरी पोस्ट में )
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