M Jamali by السلام علیکم✍️welcome✍️ Laila majnu ki dastan Hindi mai

Laila majnu ki dastan Hindi mai

            मजनूँ ने कहा हुकूमत तो लैला को सजती है।


एक दफा मजनूं जा रहा था। उन दिनों हज़रत हसन रज़ियल्लाहु अन्हु हज़रत अमीर मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हु के हक में हुकूमत छोड़ दी थी और हुकूमत उनके हवाले कर दी थी। हज़रत हसन ने फरमाया कि मैं ख़िलाफ़त से एक तरफ हो गया हूँ और मैंने हुकूमत उन्हीं को दे दी जिनको सजती थी। जब उसने यह सुना तो कहने लगा हज़रत मेरे ख्याल में तो हुकूमत लैला को सजती है। हज़रत ने फ़रमाया , “ तू तो मजनूँ है ? " तब से उसका नाम कैस की जगह मजनूँ पड़ गया। दीवाना था बेचारा अपने बस में नहीं था।



एक बार उसके बाप ने कहा कि बेटा बहुत बदनामी हो गई। अब दुआ मांग अल्लाह लैला की मुहब्बत मेरे दिल से निकाल दे, ख़त्म कर दे, उसने फ़ौरन हाथ उठाये और दुआ मांगी  ऐ अल्लाह ! लैला की मुहब्बत और बढ़ा दीजिए चुनाँचे उसके वालिद एक बार उसको पकड़कर बैतुल्लाह ले गए।  कहने लगे कि बहुत बदनामी हो गई , आज मैं तुझे नहीं छोडूंगा जब तक कि तू सच्ची तौबा न कर ले। चल तौबा कर , यह तौबा करने लगा तो उसने कहा। 
अल्लाह मैंने हर गुनाह से तौबा कर ली लेकिन लैला की मुहब्बत से तौबा नहीं करता।
उसके वालिद ने नाराज़ होकर कहा तू क्या कर रहा है ? जब वह बहुत ज़्यादा नाराज़ हुए  तो उसने मजबूर होकर हाथ उठाए और वालिद के सामने दुआ मांगने लगाः  

या अल्लाह उसकी मुहब्बत मेरे दिल से कभी न निकालना और अल्लाह उस बन्दे पर रहम करे जो इस दुआ पर आमीन कहे। 

            मुहब्बत में दीवार और कुत्ते के कदम चूमना। 


एक बार मजनूं को किसी ने देखा कि एक कुत्ते के पाँव चूम रहा है। उसने पूछ ऐ मजनूँ ! तुम ऐसा क्यों कर रहे हो ? 
मजनूँ ने कहा यह कुत्ता लैला की गली से होकर आया है।
मैं इसलिए इसके पाँव चूम रहा हूँ।
ऐसे मस्त और अक्ल में खराबी आए हुए इंसान को मजनूँ पागल न कहा जाए तो क्या कहा जाए।
मजनूं लैला की गली का तवाफ किया करता था और यह शेर पढ़ा करता था।
मैं लैला के घर की दीवारों का तवाफ करता हूँ। कभी यह दीवार चूमता हूँ कभी वह दीवार घूमता हूँ। और दरअसल इन घरों की मुहब्बत मेरे दिल पर नहीं छाई बल्कि उसकी मुहब्बत जो घरों में रहने वाली है। 




एक दफा हाकिम शहर ने सोचा कि लैला को देखना चाहिए कि मजनूँ और उसकी मुहब्बत के अफ़साने हर एक की ज़बान पर हैं। जब सिपाहियों ने लैला को पेश किया तो हाकिम हैरान रह गया कि एक आम सी लड़की थी न शक्ल न रंग न रूप था। उसने लैला से कहा, " तू दूसरी हसीनाओं से ज़्यादा बेहतर नहीं है ? 
कहने लगी ख़ामोश रह क्योंकि तू मजनूँ नहीं है। देख मगर मजनूँ की आँख से।


एक बादशाह ने लैला के बारे में सुना कि मजनूँ उसकी मुहब्बत में दीवाना बन चुका है। उसके दिल में ख्याल पैदा हुआ कि मैं लैला को देखू तो सही। जब उसने देखा तो उसका रंग काला था और शक्ल भद्दी थी।  वह इतनी काली थी कि उसके माँ - बाप ने लैल रात जैसी काली होने की वजह से उसको लैला
 काली का नाम दिया।


लैला के बारे में बादशाह का ख्याल था कि वह बड़ी नाज़नीन और परी जैसे चेहरे की होगी । मगर जब उसने लैला को देखा तो उससे कहा " तू दूसरी औरतों से तू ज़्यादा खूबसूरत नहीं है ? " जब बादशाह ने यह कहा तो लैला ने जवाब में यह कहा " ख़ामोश हो जा तेरे पास मजनूँ की आँख नहीं। अगर मजनूँ की आँख होती तो तुझे दुनिया में मेरे जैसा खूबसूरत कोई नज़र न आता।

मौलाना रोमी फरमाते हैं।

कि एक बार उसको किसी ने देखा कि  रत की ढेर बैठे कुछ लिख रहा है। 
इस पर उन्होंने कहा : जंगल एक आदमी ने एक बार मजनूं को देखा कि गम के बयाबान में अकेला बैठा हुआ था । रेत को उसने कागज़ बनाया था और अपनी उंगली को कलम और किसी को ख़त लिख रहा था । उसने पूछा कि ऐ मजनूं शैदा तू क्या लिख रहा है ? तू किसके नाम यह ख़त लिख रहा है ? मजनूं ने कहा लैला के नाम की मश्क कर रहा हूँ । उसके नाम को लिखकर अपने दिल को तसल्ली दे रहा हूँ । इससे मालूम हुआ कि जब दुनिया के महबूब का नाम लिखने और बोलने से सुकून मिलता है तो अल्लह और रसूलुल्लाहﷺ के ज़िक्र व नाम लेने से किस क़द्र सुकून मिलेगा। 


एक दफा एक आदमी नमाज़ पढ़ रहा था। मजनूँ लैला की मुहब्बत में गर्क था। वह इसी मदहोशी में उस नमाज़ी के सामने से गुज़र गया। उस नमाज़ी ने नमाज़ पूरी करके मजनूं को पकड़ लिया। कहने लगा तूने मेरी नमाज़ ख़राब कर दी कि मेरे सामने से गुज़र गया , तुझे इतना नज़र नहीं आया। उसने कहा कि खुदा के बंदे ! मैं मख्लूक की मुहब्बत में गिरफ्तार हूँ मगर वह मुहब्बत इतनी हावी हुई कि मुझे पता न चला कि मैं किसी के सामने से गुज़र रहा हूँ और तू खालिक की मुहब्बत में गिरफ्तार है कि नमाज़ पढ़ रहा था। तुझे अपने सामने से जाने वालों का पता चल रहा था। 
मुझको न अपना होश न दुनिया का होश है 
बैठा हूँ मस्त हो के तुम्हारे जमाल में

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