मैं शैतान हूँ। उन्होंने आम्हा लोगों को गुमराह करने के लिए बड़े डोरे डालते फिरते फरमाया, हो तजरिबे में कौन सी बात आई है ? वह कहने लगा कि तो बड़ी अजीब बात पूछी है।
यह कैसे हो सकता है कि मैं आपको अपनी सारी जिंदगी का तजरिबा बता दूँ। हज़रत भूसा अलैहिस्सलाम ने फरमाया, फिर क्या है बता दे। वह कहने लगा, तीन बातें मेरे तजरिबात का निचोड़ हैं।
"" 1. पहली बात यह है कि अगर आप सदका करने की नीयत कर लें तो फ़ौरन दे देना क्यों कि मेरी कोशिश यह होती है कि नीयत करने के बाद बंदे को भुला दूँ । जब मैं किसी को भुला देता हूँ तो फिर से याद नहीं होता कि मैंने नीयत की भी थी या नहीं।
""2. दूसरी बात यह है कि जब आप अल्लाह तआला से कोई वादा करें तो उसे फौरन पूरा कर देना क्योंकि मेरी कोशिश यह होती है कि मैं उस वादे को तोड़ दूँ । मसलन कोई वादा करे कि ऐ अल्लाह ! मैं यह गुनाह नहीं करूंगा तो मैं ख़ास मेहनत करता हूँ कि वह इस गुनाह में ज़रूर मुब्तला हो।
"" 3. तीसरी बात यह है कि किसी गैर - महरम के साथ तन्हाई में न बैठना क्योंकि मैं मर्द की कशिश औरत के दिल में पैदा कर देता हूँ और औरत की कशिश मर्द के दिल में पैदा कर देता हूँ । मैं यह काम अपने चेलों से नहीं लेता बल्कि मैं अपने आप ये काम करता हूँ।
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शैतान की सवारी और उसकी मक्कारी।
एक आदमी की बड़ी तमन्ना थी कि शैतान से मेरी मुलाकात हो और उससे बात करूं। एक बार उसकी मुलाकात शैतान से हो गई। उसके पास बड़े जाल थे। उस आदमी ने पूछा तुम कौन हो? कहने लगा, शैतान हूँ। उसने जाल की तरफ इशारा करते हुए पूछा ये सारा कुछ क्या है ? किस लिए लिए फिरते हो ? कहने लगा कि ये फंदे हैं और जाल हैं जिनमें लोगों को पकड़ता हूँ। उसने पूछा , मेरे लिए कौन सा जाल है ? शैतान कहने लगा कि तेरे लिए किसी जाल की ज़रूरत ही नहीं है । उसने कहा, वाह! मैं ऐसा भी नहीं हूँ कि जाल के बगैर तेरे हाथ आ जाऊँ। शैतान ने कहा, अच्छा देख लेना। बात आई गई हो गई। उसके बाद वह आदमी अपने घर की तरफ रवाना हुआ। रास्ते में दरिया था। जब वह दरिया के किनारे पहुँचा तो किश्ती जा चुकी थी। लिहाजा उसने फैसला कर लिया कि यह दरिया पार करके जाता हूँ। किनारे पर ही एक बुढ़िया आफत की पुड़िया जो हड्डियों को ढांचा बन चुकी थी, लाठी लेकर बैठी रो रही थी । उसने पूछा, अम्मा क्या हुआ? कहने लगी, मुझे दरिया के पार जाना था। किश्ती जा चुकी है।
और मैं अकेली हूँ । मैं यहाँ अकेले हैं । तू मुझे भी रह भी नहीं सकती । मेरे बच्चे घर में तरह साथ ले जा । मेरे बच्चे तुमको दुआएं देंगे । उसने कहा , मैं तुझे कैसे लेकर जाऊँ ? तुम खुद तो जाओगे , उसने कहा , हड्डियों का ढांचा हूँ । कंधों पर उठाकर ले जाना । नहीं , नहीं मैं नहीं ले जाता । उसने उसे बड़ी दुआएं दीं और कहा , तुम्हारा भला होगा । मेरे बच्चे अकेले हैं । मैं घर पहुँच जाऊँगी तो वे भी दुआएं देंगे। उसके दिल में बुढ़िया के बारे में हमदर्दी आ गई। उसने कहा,
अच्छा, चलें मैं आपको उठा लेता हूँ। पहले तो उसने सोचा कमर पर उठा लेता हूँ। फिर कहने लगा कि कहीं फिसल न जाए लिहाज़ा कहने लगा कि चलो मेरे कंधों पर बैठ जाओ। वह बुढ़िया को कंधों पर बिठाकर दरिया के अंदर दाखिल हो गया। चलते - चलते जब वह दरिया के बिल्कुल बीच में पहुँचा तो बुढ़िया ने उसके बाल पकड़कर खींचे और कहने लगी , ऐ मेरे गधे तेज़ी से चल वह आदमी हैरान होकर पूछने लगा कि तू कौन है ? उसने कहा मैं वही हूँ जिसने तुझे कहा था कि तुझे काबू में करने के लिए किसी जाल की ज़रूरत नहीं है। अब देख कि तुझे मैंने बगैर जाल के कैसे फंसाया। तुझे नज़र नहीं आ रहा था कि मैं गैर महरम हूँ। तूने मुझे कंधे पर कैसे बिठला लिया था।-------------
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