M Jamali by السلام علیکم✍️welcome✍️ Gazale/ग़ज़लें chapter (3)

Gazale/ग़ज़लें chapter (3)


Gazale/ग़ज़लें chapter (3

Gazale/ग़ज़लें chapter (3

              _""_गज़ल ((1))_""_

= मैंने चाहा आपको मुझ पे यही इल्ज़ाम है

= यह बुराई तो नहीं है ये तो एक इनआम है

= लाख क़समें दो मुझे पीना न छूटेगा मेरा

= मेरी रग रग में बसा उनकी वफ़ा का जाम है

= क्यों सितारे आसमां पे खिल उठे हैं साथियों

= आओ तुम भी देख लो कितनी सुहानी शाम है 

= ऐ हवा तू ही बता दे हाले दिल मेरा उन्हें

 = पूछ लेना उनसे इतना उनका क्या पैग़ाम है

Gazale/ग़ज़लें chapter (3

               ==((2))==

"घना जंगल अन्धेरा रास्ता था

" ये कैसे शहर में मैं आ गया था

" हवा भी हिदतों से जल गई थी

" दिलों में प्यार का शोला उठा था

" सितारे रास्ते के बुझ चुके थे

" इन आंखों में दिया जलता रहा था

" में शनासा कितने चेहरे थे सफर

" दिलों के दरम्यां इक फासला था

                --"""((3))--""

" जीस्ता लगती है अजनबी अब भी

" कितना तन्हा है आदमी अब भी

" आ भी जाओ कि रतजगा करके

" राह तकती है रौशनी अब भी

" दिल के आंगन में खिलती रहती है

" तेरे चेहरे की चान्दनी अब भी

" शहर के शोरो गुल से बेहतर है

" कच्ची गलियों की खामोशी अब भी

" कुछ तो होगा कि लोग कहते हैं

" तेरे फन में है ताज़गी अब 

Gazale/ग़ज़लें chapter (3

         ''__""((4))""__

 "हर पल इक हादसा सा लगता है

" चेहरा चेहरा बुझा सा लगता है

" घर में बस इक चराग़ है वो भी

" इस हवा को बुरा सा लगता है

" मेरे दरपेश भी मसाइल हैं

" वो भी उलझा हुआ सा लगता है

" आ गया हाथ में सिकन्दर के

" संग अब आईना सा लगता है

" शक्ल भी कुछ है देखी भाली सी

" नाम भी कुछ सुना सा लगता है

" मौसमे गुल तो जा चुका लेकिन

" ज़ख्म अब भी हर सा लगता है

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Gazale/ग़ज़लें chapter (3
Gazale/ग़ज़लें chapter (3


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