_""_गज़ल ((1))_""_
= मैंने चाहा आपको मुझ पे यही इल्ज़ाम है
= यह बुराई तो नहीं है ये तो एक इनआम है
= लाख क़समें दो मुझे पीना न छूटेगा मेरा
= मेरी रग रग में बसा उनकी वफ़ा का जाम है
= क्यों सितारे आसमां पे खिल उठे हैं साथियों
= आओ तुम भी देख लो कितनी सुहानी शाम है
= ऐ हवा तू ही बता दे हाले दिल मेरा उन्हें
= पूछ लेना उनसे इतना उनका क्या पैग़ाम है
==((2))==
"घना जंगल अन्धेरा रास्ता था
" ये कैसे शहर में मैं आ गया था
" हवा भी हिदतों से जल गई थी
" दिलों में प्यार का शोला उठा था
" सितारे रास्ते के बुझ चुके थे
" इन आंखों में दिया जलता रहा था
" में शनासा कितने चेहरे थे सफर
" दिलों के दरम्यां इक फासला था
--"""((3))--""
" जीस्ता लगती है अजनबी अब भी
" कितना तन्हा है आदमी अब भी
" आ भी जाओ कि रतजगा करके
" राह तकती है रौशनी अब भी
" दिल के आंगन में खिलती रहती है
" तेरे चेहरे की चान्दनी अब भी
" शहर के शोरो गुल से बेहतर है
" कच्ची गलियों की खामोशी अब भी
" कुछ तो होगा कि लोग कहते हैं
" तेरे फन में है ताज़गी अब
''__""((4))""__
"हर पल इक हादसा सा लगता है
" चेहरा चेहरा बुझा सा लगता है
" घर में बस इक चराग़ है वो भी
" इस हवा को बुरा सा लगता है
" मेरे दरपेश भी मसाइल हैं
" वो भी उलझा हुआ सा लगता है
" आ गया हाथ में सिकन्दर के
" संग अब आईना सा लगता है
" शक्ल भी कुछ है देखी भाली सी
" नाम भी कुछ सुना सा लगता है
" मौसमे गुल तो जा चुका लेकिन
" ज़ख्म अब भी हर सा लगता है
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