M Jamali by السلام علیکم✍️welcome✍️ रोजे़ कब फर्ज हुए,Chapter(01)

रोजे़ कब फर्ज हुए,Chapter(01)

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                       ,,,रोजे़ कब फर्ज हुए ?,,,
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नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) नुबूवत मिलने के बाद तेरा साल तक मक्का मुअज्जमा ही में लोगों को खुदाए पाक का हुक्म सुनाते  रहे और बहत ज़माने तक सिवाए ईमान लाने और बुत परस्ती छोड़ने के अलावा कोई दूसरा हुक्म न था। फिर आहिस्ता आहिस्ता अल्लाह तआला के यहां से अहकाम आने शुरू हुए । इस्लाम के अरकान में सब से पहले नमाज़ फ़र्ज़ हुई फिर मक्का मुअज्जमा से हिजरत फरमाने के बाद जब आप मदीना मुनौवरा तशरीफ लाए।  तो वहां बहुत से अहकामात आने शुरू हुए , उन्ही में से एक हुक्म रोज़े का भी था । रोज़े की तकलीफ चूंकि नफ्स पर शाक गुज़रती है इसलिए उसको फरजी़यत में तीसरा दर्जा दिया गया इस्लाम ने अहकाम की फरजी़यत में ये रविश इख्तियार की कि पहले नमाज़ जो जरा हल्की इबादत है । इस को फ़र्ज किया , उसके बाद ज़कात को और ज़कात के बाद रोज़ा को । सब से पहले आशूरा यानी मुहर्रम की दस तारीख़ का रोज़ा फ़र्ज़ था उसके बाद रमज़ान शरीफ के रोज़ों का हुक्म हुआ और आशूरा की फ़रज़ीयत ख़त्म हो गई । रोजे के अन्दर शुरू में इतनी सहूलत और रिआयत थी कि जिसका जी चाहे रोज़ा रख ले और जो चाहे एक रोज़ा के बदले किसी गरीब को एक दिन का खाना खिला दे , अल्लाह तआला ने अपने बंदों की कमजो़रियों पर नज़र फरमाते हुए आहिस्ता आहिस्ता रोजों की आदत डलवाई।                 चुनांचे जब कुछ ज़माना गुज़र गया और लोगों  को रोज़ा रखने की कुछ आदत हो गई तो माजूर और बीमार लोगों के सिवा बाकी सब लोगों के हक में ये इख्तियार खत्म कर दिया गया और हिजरत से डेढ़ साल बाद दस शाबान 2 हिजरी को मदीना मनौवरा में रमज़ान के रोजों की फरजीयत का हुक्म नाजि़ल हुआ और इनके अलवा कोई रोजा़ फ़र्ज न रहा इसका फ़र्ज होना किताब व सुन्नत और इजमा से साबित है।
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""""""""""""""""""""""""'''''''',,,,Chapter,,,,(01),,,,""""""""""""""""""""""""
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