![शुक्र गुज़ार।Shukar guzar शुक्र गुज़ार।Shukar guzar](https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEgfyWyYKgDynyWgRC7tt9p9q8ZiDGtPuV29rLqunF67WdS9Ry7FNcVchPfsONvSWi785x9C2KWH46JW3z6CKhjAPsKunNqTpwJf464Tfu7hRiq5jrQmCeIzFQL9_Q3eDOI10RLi21eUZhUptqeVdQDBObuwo7z4x01RictQ244NMllGGaz-7DtIWMfWtA=w400-h225)
हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के ज़माने में एक आदमी था। वह बेचारा बहुत ही गरीब था। वह टुकड़े टुकड़े को तरसता था। एक दफा उनकी हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से मुलाकात हो गई। वह कहने लगा, हज़रत! आप कलीमुल्लाह हैं और कोहे तूर पर जा रहे हैं। आप मेरी तरफ से अल्लाह तआला की ख़िदमत में यह फरियाद पेश कर देना कि मेरी आने वाली जिंदगी का सारा रिज्क़ एक ही दम दे दें ताकि मैं कुछ दिन तो अच्छी तरह से ख़ा पी कर जाऊँ। हज़रत भूसा अलैहिस्सलाम ने उसकी फरियाद अल्लाह रब्युलइज्जत की खिदमत में पेश कर दी। परवरदिगार आलम ने उसकी फरियाद कुबूल फरमाई और उसे कुछ बकरियाँ, गेहूँ की चंद बोरियाँ और चीजें उसके मुकद्दर में थीं वे सब अता फरमा दीं। उसके बाद हज़रत भूसा अलैहिस्सलाम अपने काम में लग गए। एक साल के बाद
हज़रत मूसा अलैहिस्सालम को ख्याल आया कि मैं उस बंदे का पता तो करूं कि उसका क्या बना। जब उसके घर गए तो आपने देखा कि उसने आलीशान मकान बनाया हुआ है। उसके दोस्त आए हुए हैं।
उनके लिए दस्तरख्वान लगे हुए हैं। उन पर किस्म किस्म के खाने लगे हुए हैं और सब लोग खा पीकर मज़े उड़ा रहे हैं। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम यह सारा मंज़र देखकर बड़े ईरान हुए। जंब कुछ दिनों बाद कोहे तूर पर हाज़िर हुए और अल्लाह तआला से हम कलाम हुए तो अर्ज़ किया,ऐ परवरदिगार आज़म! तूने उसे जो सारी जिंदगी का रिज़क अता फरमा दिया था। वह तो थोड़ा सा था। और अब तो "अल्लाह तआला"ने पास कई गुना ज़्यादा नेमतें हैं।फरमाया,ऐ मेरे प्यारे मूसा!अगर वह रिक अपनी ज़ात पर इस्तेमाल करता तो उसका रिज़क वही था जो हमने उसको दे दिया था। लेकिन उसने हमारे साथ नफे की तिजारत की। मूसा अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया,अल्लाह! उसने कौनसी की? अल्लाह तआला ने इर्शाद फरमाया कि उसने मेहमानों को खाना खिलाना शुरू कर दिया और मेरे रास्ते में खर्च करना शुरू कर दिया और मेरा दस्तूर है कि जो मेरे रास्ते में एक रुपया खर्च करता है मैं उसे कम से कम दस गुना ज्यादा दिया करता हूँ।क्योंकि उसको तिजारत में नफा ज्यादा हुआ है इसलिए उसके पास माल व दौलत बहुत ज़्यादा है।
शुक्रे इलाही की इंतिहा को हुआ तूने
""हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने अल्लाह रब्बुलइज्ज़त से अर्ज़ किया ऐ अल्लाह)
मैं तेरा शुक्र कैसे अदा करूं? क्योंकि तेरी एक-एक नेमत ऐसी है कि मैं सारी जिंदगी भी इबादत में लगा रहूँ तो सिर्फ एक नेमत का शुक्र भी अदा नहीं कर सकता।जब उन्होंने यह कहा तो अल्लाह तआला ने उसी वक्त उन पर"वही"नाज़िल फरमाई कि
ऐ मूसा!अगर आपके दिल की यह आवाज़ है कि आप सारी जिंदगी शुक्र अदा करें तो भी शुक्र अदा नहीं कर सकते तो सुन लो कि अब तो आपने मेरा शुक्र अदा करने का हक अदा कर दिया,"सुब्हानअल्लाह।"
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