"بسم الله الرحمان الرحيم"
~~~•~~~•••~•~•~••~~•••~~~~~~•••~~~~~•~~~~अल्लह तआला फरमाता है।
और याद करो उस वक्त को आज़माया इब्राहीम को उसके रब ने वह उसमें कामयाब हुआ।
"फ़तम्माहुन्ना" यह है कि वह इसमें सौ फीसद कामयाब हुए। अब आपकी ख़िदमत में इन चंद बातों की तफ्सील करता हूँ। कुछ बातों में
(1)=" बेझिझक कूद पड़े आतिशे नमरूद में,,,,,,,,,
किताबों में लिखा है,,
अल्लाह रब्बुलइज्ज़त ने अपने नबी इब्राहीम अलैहिस्सलाम की तरफ "वही" नाज़िल फ़रमाई कि ऐ इब्राहीम! आप मेरे खलील हैं। इस बात से परहेज़ करना कि मैं आपके दिल की तरफ तवज्जेह करूं और मैं आपके दिल को किसी गैर के साथ मशगूल पाऊँ इसलिए कि जिसको मैं अपनी मुहब्बत के लिए चुन लेता हूँ तो वह ऐसा होता है कि अगर उसको आग भी जला दे तो उसका दिल मेरी तरफ से दूसरी तरफ़ मुतवज्जेह नहीं होता।
लिहाज़ा ज़िन्दगी में वह वक्त भी आया जब नमरूद ने आपको आग में डाल देने का हुक्म दिया। तफ़सीरों में उस आग की तफ़सील बयान की गई है। उन लकड़ियों को एक ही वक़्त में आग लगाई गई। जब सारी लकड़ियाँ जल गयीं तो नमरूद सोचने लगा कि हज़रत इब्राहीम को आग में कैसे डाले। आखिरकार शैतान नमरूद के पास आया और उसने समझाया कि एक झूला बना लीजिए और उसमें बिठाकर इनको आग में फेंक दीजिए। इस तरह यह आग के ठीक बीच में जाकर गिरेंगे । लिहाज़ा झूला बनया लिया गया और आपको उसमें बिठाकर फेंक दिया गया । अभी हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का झूला हया में था कि फरिश्ते ताज्जुब से कहने लगे , ऐ अल्लाह इब्राहीम के दिल में आपकी कतनी मुहब्बत है , आपकी मुहब्बत की वजह से आग में डाले जा रहे हैं । उन्होंने असबाब की कोई परवाह नहीं की।
ऐ अल्लाह इनकी मदद फरमा दीजिए । मगर अल्लाह तआला ने फ़रिश्तों को फ़रमाया ,
तुम लोग उनके पास चले जाओ,
और अपनी मदद पेश कर लो। फिर मेरा खलील कुबूल कर ले तो मदद कर देना वरना ख़लील जाने और खलील का रब जलील जाने क्योंकि यह मेरा और मेरे खलील का मामला है।
लिहाज़ा फरिश्तों ने इब्राहीम अलैहिस्सलाम के पास आकर मदद पेश की मगर आप अलैहिस्सलाम ने उनकी बात सुनकर फ़रमाया » मुझे तुम्हारी हाजत कोई नहीं।"«
फिर हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम हाज़िर हुए और मदद पेश की । इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने पूछा जिब्रील! आप अपनी मर्जी से आए हैं या अल्लाह रब्बुलइज़्ज़त ने भेजा है?
जिब्रील अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया कि मैं आया तो अल्लाह की मर्जी से हूँ मगर अल्लाह तआला ने मुझे फरमाया है कि अगर मदद कुबूल करें तो मदद कर देना।
हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया ," नहीं जब मेरे अल्लाह को मेरे हल का पता है तो फिर मुझे यही काफ़ी है। कि परवरदिगार जानता है,की इब्राहीम किस हाल में है। मेरा मालिक और महबूब जानता है कि मुझे उसके नाम पर आग में डाला जा रहा है। लिहाज़ा मैं आग में जाना ही पसन्द करूंगा।" जब फरिश्ते वापस चले गए तो अल्लाह रब्बुलइज़्ज़त ने आग से मुख़ातिब होकर इर्शाद फ़रमाया ,"
"आग मेरे इब्राहीम पर सलामती वाली ठंडक वाली बन जा।" "इस तरह अल्लाह तआला ने आग को उनके लिए गुलज़ार बना दिया।
(“2”) वीरान वादी में,,,,,,,,
हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम की पैदाइश हो गई।
तो अल्लाह रब्बुलइज़्ज़त ने इब्राहीम अलैहिस्सलाम से फ़रमाया ," ऐ मेरे प्यारे खलील! आप अपनी बीवी को वीरान वादी में छोड़ आइए। " इसलिए आप अपनी बीवी हज़रत हाजरा रज़ियल्लाहु अन्हा और बच्चे हज़रत इस्माईल को बैतुल्लाह के करीब जहाँ पानी और हरियाली का नाम व निशान भी नहीं था , छोड़ देते हैं। कोई बात भी नहीं करते और फिर वापस मुल्के शाम जाने के लिए खड़े हो जाते हैं। यह कोई आसान काम नहीं था। ज़रा तसव्वुर करके देखिए कि अपनी बीवी को अकेले मकान में छोड़कर आने के लिए बंदे का दिल तैयार नहीं होता हालाँकि शहर के अंदर होता है। फिर अपनी बीवी और बच्चे को ऐसे वीराने में छोड़ देना जहाँ पीने को पानी भी न मिले और हर तरफ़ पत्थर ही पत्थर नज़र आएं , कितनी बड़ी आज़माइश है। जब अल्लाह के हुक्म से उन्हें छोड़कर वापस आने लगे तो बीवी ने पूछा, आप हमें यहाँ क्यों छोड़कर जा रहे हैं ? मगर आपने कोई जवाब नहीं दिया। दोबारा पूछा कि आप हमें यहाँ क्यों छोड़कर जा रहे हैं ? मगर फिर भी आपने कोई जवाब नहीं दिया। वह भी आख़िर नबी के साथ रही थीं। तीसरी बार पूछने लगीं कि क्या आप हमें अल्लाह के हुक्म से यहाँ छोड़कर जा रहे हैं ? आपने जवाब देने के बजाए सर हिला दिया कि हाँ मैं अल्लाह के हुक्म आपको यहाँ छोड़कर जा रहा हूँ।
जब उन्हेंने यह सुना तो कहने लगीं अगर आप हमें अल्लाह के हुक्म से छोड़कर जा रहे हैं। तो अल्लाह तआला हमें कभी जा़ए नहीं फ़रमाएंगा। फिर आप अपने बीवी बच्चे को वहाँ छोड़कर वापस मुल्के शाम चले गए।
(3) सिखाए किसने इस्माईल (अलैहिस्स्लाम) को फरज़न्दी„,,,,,,,,,
अपनी जान देना आसान होता है। लेकिन अपने सामने अपने बच्चे को मरते देखना इससे भी ज़्यादा मुश्किल काम है। इसीलिए तो बच्चे को बचाने के लिए माँ~बाप आ जाते हैं। और कहते हैं कि पहले हमें मारो फिर बच्चे को हाथ लगाना। मालूम हुआ कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का आग में डाले जाने का इम्तिहान एक दर्जा पीछे था। और औलाद को अपने हाथों से जि़ब्ह करना उससे भी एक दर्जा आगे था। हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम अपनी बीवी और बच्चे से मिलने मुल्के शाम से मक्का मुकर्रमा आए । आपने आठ ज़िलहिज्जा को ख्वाब देखा कि मैं अपने बेटे को अल्लाह के नाम पर जि़ब्ह कर रहा हूँ। आप सुबह उठते तो सोचने लगे कि शायद कुर्बानी मकसूद है। इसलिए आपने सत्तर ऊँट अल्लाह के रास्ते में कुर्वान कर दिए। नवीं रात को फिर वही ख्वाब देखा। इसलिए दूसरे तो दिन भी सत्तर ऊँट कुर्वान कर दिए। लेकिन दसवीं रात को फिर वही ख्वाब देखा कि मैं अपने बेटे को अल्लाह के नाम पर कुर्बान कर रहा हूँ। तो वाज़ेह तौर पर समझ गए कि अल्लाह तआला को मेरे बेटे की ही कुर्बानी मतलूब है। इसलिए आपने पक्का इरादा कर लिया कि अब मैंने अपने सात साला बेटे इस्माईल को अल्लाह की राह में कुर्बान करना है। चुनाँचे जब सुबह हुई तो हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अपने बच्चे को प्यार किया और कहा बेटा! मेरे साथ चलो। बीवी ने पूछा सब्र कहाँ ?
आपने फ़रमाया , किसी बड़े की मुलाकात करनी है। नाम न बताया क्योंकि वह आख़िर माँ हैं, मुमकिन है। क़ुर्बानी का नाम सुनकर उनका दिल पसीज जाए। और आँखो में आँसू आ जाए और सब्र व बरदाशत में कुछ फर्क़ आ जाए। इसलिए मोटी सी बात कर दी के किसी बड़े की मुलाकात के लिए जाना है। बीबी हाजरा रज़ियल्लाहु अन्हा ने हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम को नहलाया , सर में तेल भी लगाया , कंघी भी कर दी। लेकिन उनको मालूम नहीं था। कि उनका बेटा आज किसी आज़माइश में जा रहा है। अलबत्ता रवाना होते वक्त इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अपने बेटे को कह दिया, बेटा! एक रस्सी और छुरी भी ले लो। उसने पूछा, अब्बा ज़ान! रस्सी और छुरी किस लिए लेनी है? फ़रमाया, बेटा! जब बड़े से मुलाकात होती है तो फिर कुर्बानियाँ भी देनी पड़ती हैं। बेटा समझा कि शायद किसी जानवर को कुर्बान करेंगे। यूँ हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम अपने जिगर के टुकड़े को कुर्बान करने के लिए घर से चल पड़े। जब वह अपने घर से चले गए तो पीछे शैतान मलऊन बीबी हाजरा रज़ियल्लाहु अन्हा के पास आया और कहने लगा तुझे पता भी है कि आज तेरे बेटे के साथ क्या होने वाला है? उन्होंने पूछा क्या? वह कहने लगा तेरे मियाँ तेरे बेटे को जि़ब्ह कर देगें । उन्होंने कहा बूढ़े! तेरी अक्ल चली गई , कभी बाप भी अपने बेटे को ज़िब्ह करता है ? वह कहने लगा हाँ , उनको अल्लाह का हुक्म हुआ है । जब उसने यह कहा तो कहने लगीं अगर अल्लाह का हुक्म हुआ है तो मेरे बेटे को कुर्बान होने दो क्योंकि अगर मेरे बारे में अल्लाह का हुक्म होता तो मैं भी उसके रास्ते में कुर्बान होने के लिए तैयार हो जाती । जब शैतान का बीबी हाजरा के सामने कोई बस न चला तो वह रास्ते में हज़रत इस्माईल के पास आया और उनसे पूछा सुनाओ तुम कैसे,और कहाँ जा रहे हो ? किसी बड़े की मुलाकात के लिए जा रहा हूँ। वह कहने लगा हर्गिज़ नहीं, तुझे ज़िव्ह कर दिया जाएगा। उन्होंने कहा यह हो सकता है, के कोई बाप भी अपने बेटे को ज़िब्ह करता है ? कहने लगा हाँ अल्लाह का हुक्म है। हज़रत इस्माईल कहने लगे अगर अल्लाह तआला का हुक्म है तो मैं हाज़िर हूँ। लिहाज़ा शैतान फिर नाकाम हुआ। फिर रास्ते में हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के पास आया और कहने लगा, बेटे को क्यों ज़िब्ह करते हो, कभी ख़्वाब के पीछे भी कोई अपनी औलाद को ज़िब्ह करता है? देखिए काबील ने हाबील को कत्ल किया था लेकिन आज तक उसका नाम रुसवाए ज़माना मशहूर है। अगर आप भी अपने बेटे को ज़िब्ह कर देंगे तो कहीं आपका नाम भी ऐसे ही बुरा न मशहूर हो जाए।
लिहाज़ा ऐसा काम हर्गिज़ न करना। हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया, अरे बदबख्त! मालूम होता है तू शैतान है। काबील ने तो अपनी नफ़्सानी ख्वाहिश की वजह से बंदे को मारा था और मैं तो रहमानी ख्वाब को पूरा करने के लिए अपने बेटे को कुर्बान करना चाहता हूँ । मेरे ख्वाब का उसके अमल के साथ कोई ताल्लुक और वास्ता भी नहीं है। काबील तो औरत का मिलाप चाहता था और मैं अपने पाक परवरदिगार का मिलाप चाहता हूँ। लिहाज़ा मैं आज अपने बेटे की कुर्बानी देकर दिखाऊँगा। उसके बाद जब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम आगे बढ़े तो शैतान आकर रास्ते में खड़ा हो गया और कहने लगा मैं नहीं जाने देता। उस वक़्त उन्होंने सात कंकरिया उठाकर शैतान को मारी और अल्लाह तआला ने वहाँ से शैतान को भगा दिया। जहाँ उसे हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने कंकरिया मारी उस जगह का नाम
"जमरतुल~ऊला" पड़ गया। फिर दूसरी जगह पर जाकर रास्ता रोका और हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने वहाँ भी उसकी रमी जमार की।
शैतान फिर भाग गया। उस जगह का नाम "जमरतुल~वुस्ता" पड़ गया। फिर तीसरी जगह भी उसको कंकरियाँ लगीं और उस जगह का नाम "जमरतुल~उक्बा" पड़ गया।
"जमरतुल~उक्बा" से आगे हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम ने हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम से पूछा, अब्बा जान! आपने फरमाया कि बड़े के लिए जाना है , बताइए कि उस बड़े की मुलाकात कब होगी? अब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अपने बेटे को सारी बात बताई कि,
ऐ मेरे बेटे! मैंने ख़्वाब देखा है कि मैं तुम्हें जि़ब्ह कर रहा हूँ, बता तेरी क्या राय है ?
बेटा भी बड़े दर्जे के नबी के घर का चश्म व चिराग थे। और बाद में रिसालत के ओहदे पर बैठने वाला थे। इसलिए कम उम्री के बावजूद इताअत के साथ सर झुकाते हुए बहुत ही अदब से अर्ज़ करने लगे,
ऐ अब्बा जान!
कर गुज़रिए जिस बात का आपको हुक्म हुआ है, आप मुझे सब करने वाला पाएंगे।
सुब्हानअल्लाह! जब बाप के दिल में मुहब्बत इलाही का जज़्बा जोश मार रहा होता है। तो फिर घर के दूसरे लोगों के अंदर भी उसके नमूने नज़र आते हैं। जब बेटे ने यह जवाब दिया तो हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम उनको जि़ब्ह करने के लिए तैयार हो गए। यह देखकर वह कहने लगे,
"ऐ अब्बा जान! मैं आपसे चार बातें अर्ज़ करना चाहता हूँ!
हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने फरमाया मेरे बेटे! तुम मुझे बताओ कि तुम इस वक्त क्या कहना चाहते हो? अर्ज़ किया अब्बा जान! पहली बात तो यह कहना चाहता हूँ कि आप छुरी को अच्छी तरह तेज़ कर लीजिए ऐसा न कि छुरी खुंडी हो और मुझे ज़िब्ह करने में ज़्यादा वक़्त लग जाएं।
मैंने जब अल्लाह के नाम पर जान देनी ही है तो छुरी तेज़ होने की वजह से मेरी जान जल्दी निकलेगी और मैं से वासिल हो जाऊँगा।
यह सुनकर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने छुरी और भी तेज़ कर ली और पूछा बेटा!
दूसरी बात कौन सी है ? बेटे ने अर्ज़ किया,“अब्बा जान ! मैं छोटा हूँ , मुझे रस्सी से बाँध दीजिए।
लिहाज़ा इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने उनको रस्सी से बाँध दिया और पूछा बेटा! तीसरी बात क्या है? बेटे ने अर्ज़ किया,
अब्बा जान! जब आप मुझे जिब्ह करेंगे तो मेरा चेहरा ऊपर आसमान की तरफ़ न करना क्योंकि मैं चाहता हूँ कि मुझे सज्दे की हालत में मौत आए। वैसे भी जब आपकी तरफ पीठ होगी तो आपके दिल में बाप वाली मुहब्बत भी जोश नहीं मारेगी।
हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने फरमाया, बेटा! मैं यह भी कर दूंगा। आप अब और क्या बात करना चाहते हो ? अर्ज़ किया,“अब्बा जान! जब आप मुझे जि़व्ह कर चुकें तो आप मेरे कपड़े मेरी वालिदा को दिखा देना और कहना कि आपका बेटा अल्लाह के नाम पर कामयाब हो गया।
हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम की चौथी बात पर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम रो पड़े और अल्लाह रब्बुलइज्जत से फ़रियाद की,
“ऐ अल्लाह तुने बुढ़ापे में औलाद दी और अब इस मासूम बच्चे की कुर्बानी मांगता हैं, ऐ अल्लाह! अपने ख़लील पर रहम फ़रमा
और इस बच्चे पर भी जो कुर्बानी के लिए तैयार है।
फिर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम को औंधे मुँह लिटाकर उनके गले पर छुरी रखी दी। वह उनको जि़ब्ह करना चाहते थे। मगर छुरी उनको जि़ब्ह नहीं करती थी। अल्लाह रब्बुलइज्ज़त ने जिब्रील अलैहिस्सलाम को हुक्म दिया," जिब्रील! जाओ और छुरी को थाम लो अगर रगों में से कोई रग कट गई।
तो फ़रिश्तों के दफ्तर से तुम्हारा नाम निकाल दूंगा।
लिहाज़ा हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम आकर छुरी को धाग लेते हैं। हज़रत इब्राहीम को छुरी चलाने की कोशिश करते हैं लेकिन छुरी नहीं चलती अपना पूरा बोझ उस के ऊपर डाल देते हैं।
मगर छुरी ने को फिर भी बच्चे को जि़व्ह न किया। चुनाँचे हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम गुस्से में आकर छुरी से कहते हैं।
ऐ छुरी ! तू क्यों नहीं चलती ? छुरी ने जवाब में पूछा , ऐ इब्राहीम ख़लीलुल्लाह ! जब आपको आग में डाला गया था। तो आप को आग ने क्यों नहीं जलाया था।?
हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया, आग को अल्लाह का हुक्म था कि इब्राहीम को नहीं जलाना। फिर छुरी कहने लगी,
"ऐ इब्राहीम ख़लीलुल्लाह! आप मुझे एक बार कहते हैं कि गला काटो और अल्लाह मुझे सत्तर बार कह रहे हैं कि हर्गिज़ नहीं काटना। अब बताए कि मैं गला कैसे काट सकती हूँ ? अल्लाह रब्बुलइज्जत की शान देखिए कि उसने हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम को जिंदा बचा लिया।
और उनके बजाए एक मेंढा कुर्बान हो गया।
अल्लाह तआला को हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की यह अदा इतनी पसन्द आई कि अल्लाह तआला ने उनके बेटे को महफूज़ भी फरमा लिया और फ़रमाया,
"़़़उसकी जगह हमने एक बड़ी कुर्बानी दे दी।़़़
मुफस्सिरीन ने लिखा है कि अल्लाह तआला ने “ अज़ीम " का लफ़्ज़ इसलिए इर्शाद फरमाया कि हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम की पेशानी में दो नबुव्वतों का नूर था। एक अपनी नबुव्वत का और एक
"सैय्यदना रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम"
की नबुव्वत का।
अल्लाह तआला फरमाता हैं।
यह बहुत बड़ी आज़माइश थी।
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