खा़स ग़ज़ल
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🌷दुआ करो कि ये पौधा सदा हरा ही लगे
🌷उदासियों में भी चेहरा खिला -खिला ही लगे
🌷ये चाँद -तारो का आंचल उसी का हिस्सा है
🌷कोई जो दुसरा ओढ़े तो दुसरा ही लगे
🌷नहीं है मेरे मुक़दर में रोशनी न सही
🌷ये खिड़की खोलो ज़रा सुबह की हवा ही लगे
🌷अजीब शख्स है नाराज़ हो के हंसता है
🌷मैं चाहता हूं ख़फा हो तो वो ख़फा ही लगे
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🌷दुआ करो कि ये पौधा सदा हरा ही लगे
🌷उदासियों में भी चेहरा खिला -खिला ही लगे
🌷ये चाँद -तारो का आंचल उसी का हिस्सा है
🌷कोई जो दुसरा ओढ़े तो दुसरा ही लगे
🌷नहीं है मेरे मुक़दर में रोशनी न सही
🌷ये खिड़की खोलो ज़रा सुबह की हवा ही लगे
🌷अजीब शख्स है नाराज़ हो के हंसता है
🌷मैं चाहता हूं ख़फा हो तो वो ख़फा ही लगे
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